(1)उप सूत्र;-प्रेम सभी जीव और मानव के लिये लौकिक रूप में परस्पर उत्पन्न होने वाले दो तरंगों के समानान्तरीकरण से शुरू होता है, जिसका प्रगटीकरण यौन सबंध से होता है। *समालक दर्शन*
समालक दर्शन:-(2) उप सूत्र-----सामान्यत: ------- {2•i} (1) नारी जीवन मां बनने के पूर्व अर्द्ध सत्य होता है। 2) जो दो भागों में बंटा होता है, रज:स्वला पूर्व और पश्चात। (३) शेष एक चौथाई सत्य उसमें ममता ग्रहण करने अर्थात माँ बनने पर उसमें जुटती है। और(4) शेष एक चौथाई सत्य योग माया होता है। जो माय पति के हाथ में होता है। समालक दर्शन:-{2ii} उप सूत्र-----सामान्यत: ---- (1) पुरुष जीवन भी अर्द्ध सत्य होता है, जो दो भागों में बंटा होता है, (2)एक नारी मिलन पूर्व और दूसरा उसके बाद ,तब पूर्णता की ओर अग्रसर होता है। यह अर्द्ध नारिश्वर को इंगित करता है। (3) पिता बनने के बाद जिसमें एक चौथाई सत्य और जुट जाता है। (4)शेष एक चौथाई सत्य माया पति के हाथ में होता है, जिसे योगमाया कहते है। ×××××××
इस स्थिति में आने पर दोनों की अपनी पहचान अलग अलग बनते हैं।
 उपरोक्त कथन जीव के मानसिक अवस्था का परिचायक है। ××××××× ्््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््् फर्क केवल इतना है कि एक जड़ है तो दूसरा चेतन।