yनवगीत के प्रवर्तक ,कवि एवं साहित्यकार राजेंद्र प्रसाद सिंह अपने आप में एक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था थे। उन्होंने मुजफ्फरपुर में अपनी प्रतिभा, मेहनत और लगन द्वारा एक ऐसा सकारात्मक माहौल तैयार किया, जिसके कारण बहुत सारे कवियों और साहित्यकारों का जन्म हुआ । मेरे गुरु , जनवादी कवि, नाटककार,रंगकर्मी, उपन्यासकार , एवं अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा ( विकल्प) के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष काॅमरेड यादवचंद्र के वे बहुत अच्छे मित्र थे।
वे मुझे भी बहुत स्नेह देते थे । मुजफ्फरपुर शहर के किसी भी कोने में मैं साहित्यिक आयोजन करता ,उनको जरूर आमंत्रित करता । वे समय पर पहुँच जाते । अत्यल्प उपस्थिति के कारण जब मेरा मन खिन्न हो जाता , वे हिम्मत देते और अकेले ही घंटों कविता सुनाकर एक समां बांध देते। मेरी पहली मुलाकात सन् 1995 में दिनकर जयन्ती पर सिकंदरपुर में हुई । उसके बाद आजीवन उनसे मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा। मैं बराबर उनके घर ( आधुनिका) पर चला जाता और घंटों उनसे साहित्यिक चर्चा करता । कभी-कभी शहर के प्रतिष्ठित पत्रकार कन्हैयाशरण जी के साहू रोड स्थित घर पर जाता और वहीं राजेंद्र प्रसाद सिंह जी से भी भेंट हो जाती ।
'भूमिका', 'डायरी के जन्मदिन', 'उजली कसौटी',
'शब्द यात्रा', 'प्रस्थान बिन्दु', 'अमावस और जुगनू', 'लाल नील धारा', 'गज़र आधी रात का', 'आओ खुली बयार', 'भड़ी सड़क पर ' आदि उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं । उन्होंने पुरा जीवन साहित्य और समाज को समर्पित कर दिया । यह बड़ी बात है ।
( 12 जुलाई को राजेंद्र प्रसाद सिंह की जयन्ती है । उन्हे सादर स्मरण एवं श्रद्धा-सुमन )
प्रस्तुत है उनकी एक रचना--
तांबे का आसमान ,
टीन के सितारे ,
गैसीला अंधकार ,
उड़ते है कसफुट के पंछी बेचारे ,
लोहे की धरती पर
चाँदी की धारा
पीतल का सूरज है
राँगे का भोला-सा चाँद बड़ा प्यारा,
सोने के सपनो की नौका है,
गंधक का झोंका है,
आदमी धुँए के हैं ,
छाया ने रोका है,
हीरे की चाहत ने
कभी-कभी टोका है,
शीशे ने समझा
कि रेडियम का मौका है ,
धूल 'अनकल्जर्ड' है,
इसलिए बिकती है-
-'ज़िन्दगी नहीं है यह-धोखा है, धोखा है!'
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