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Friday, December 22, 2023

5. "मेरा मत" ईश्वर की अवधारणा ७वां आलेख।

" मेरा मत"सेरीज के छ: प्रकाशित आलेख का संक्षेप है :- (१)कि, सनातन प्राकृतिक संरचना पर आधारित जीवन शैली है।(२) सनातन- धर्म, पंथ या संप्रदाय नहीं है।(३)पाषाण युग से कड़ोरों वर्ष पहले परमानंद और परमशक्ति (पिंडी) की अवधारणा पनपी। परमानंद की आकृति से सभ्यता का और परम पिंड( मातृ रूप)से संस्कृति का संवर्धन शुरू हुआ। (४)परमानंद आकृति का भूमि पर उकेरा गया प्रतिकात्मक चिन्हों से रेखा,बिन्दु, वृत, शून्य ,जोड़- घटाओ,और गणा-भाग की अवधारणा पनपी। (५) शरीर की आकृति के शून्यनूमा नौ अंग से अंक (१,२,३,४,५,६,७ ,८ और ९) बने। और क्रमशः कलांतर में अंकगणित व रेखा गणित बना। (६) परमालय में परमानंद की ठोस आकृति और परम पिंड ( मातृ रूप) की आकृति की स्थापना के बाद और वहीं कड़ोरों अरबों वर्ष तक आनंद की सुधि प्राप्त करने के बाद आनेवाले परिणाम का उल्लेख होगा। यहाँ आनंद का मूल स्रोत "विचार का बल" FORCE OF THOUGHT के तरंगों का उक्त दोनों आकृतिओं में संश्लेषण का है,जिसमें ईश्वर की अवधारणा का इतिहास होगा। "वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है? वेदों के अनुसार वह शक्ति बल तथा क्रिया जिसकी वजह से संसार का निर्माण हुआ है वही ईश्वर है. क्योंकि वह शक्ति हमेशा से थी और हमेशा रहेगी इसलिए वह शाश्वत है. वेदों के अनुसार ईश्वर का सबसे उत्तम नाम ॐ है. ईश्वर वह शक्ति है जो बिना भेदभाव के कर्म के अनुसार प्रत्येक प्राणी जीव आदि को कर्म फल प्रदान करती है." (सौजन्य -गुगल ) ईश्वर की उपरोक्त अवधारणा में क्रिया( कार्य) और शक्ति है, लेकिन वह बल और उसका श्रोत उर्जा की विवेचना को केवल मान लिया गया है। आखिर WORK & POWER है तो ENERGY भी होगा ही। यही इस आलेख में स्पष्ट करना है। प्रकृति में मानव के अस्तित्व का कालखंड विभाजन आज कल के अलग अलग धर्मों में बहुत मतभिन्नता है। हिन्दू मान्यता के विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है. 1 मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष. अब तक 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और यह 7वां मन्वंतर चल रहा है जिसका नाम वैवस्वत मनु का मन्वंतर कहा गया है. इसी तरह विष्णु काल और शिव काल बतलाया गया है। ब्रह्मा की आयु के बराबर विष्णु का एक दिन होता है। इस आधार पर विष्णु जी की आयु १०० वर्ष है। विष्णु जी १०० वर्ष का शंकर जी का एक दिन होता है। इस दिन और रात के अनुसार शंकर जी की आयु १०० वर्ष होती है। इस तरह शिव काल अरबों खरबों मानव वर्षों का होगा। हिन्दू धर्म के बाद जैन धर्म में काल- विभाजन को परखें, उसमें क्या है?अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल के भेद - सुषमा-सुषमा काल, सुषमा काल, सुषमा-दुःषमा काल, दुःषमा-सुषमा काल, दुःषमा काल एवं दुःषमा-दुःषमा काल। ये छः भेद अवसर्पिणी काल के हैं। इससे विपरीत उत्सर्पिणी काल के भी छः भेद हैं। 1) पहला काल 21 हजार वर्ष का होता है। (दुःषमा-दुःषमा काल)2) दूसरा काल 21 हजार वर्ष का होता है। (दुःषमा काल)3) तीसरा काल 42 हजार वर्ष कम एक कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (दुःषमा-सुषमा काल)4) चौथा काल दो कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा-दुःषमा काल)5) पंचम काल तीन कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा काल)6) छठा काल चार कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। (सुषमा-सुषमा काल) इस तरह अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी के कुल काल का योग 20 कोड़ा-कोड़ी सागर का होता है। यह भी कड़ोरों अरबों वर्षों का है। अब यजीदी- यजीदी धर्म प्राचीन विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार यजीदी धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना जाता है। निष्कर्ष यह कि इन काल- खंड से ईश्वरीय उर्जा का क्या संबंध है? जिस तरह कन्भेक्स लेंस पर निरंतर पड़ने वाले सूर्य किरणों से ताप उर्जा बनता है। उसीतरह ईश्वरीय उर्जा का निर्माण होता है। (क्रमशः)

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