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Thursday, May 2, 2024

Anil's Ideology: - यह ' मेरा मत ' सेरीज के कुल दस आलेखों का सार है।

(10)Anil's Ideology: - यह ' मेरा मत ' सेरीज के कुल दस आलेखों का सार है। (१) मानव आकृति के क्रमिक निर्माण में ही सभ्यता और संस्कृति का विकास होना शुरू हो गया। (२) सभ्यता अपना अपना आनंद का मार्ग निर्माण और विकास का, वहीं संस्कृति अपनापन को विकसित करती हुई कर्म और व्यवहार का मार्ग निर्माण करती है। (३) सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे का पूरक है। (४) सभ्यता अर्थात आनंद का मुर्त रूप भग और लिंग की संयुक्त आकृति है, जिसे आनंद की भावना का मार्ग और कालांतर में शिव लिंग कहा गया, वहीं संस्कृति को प्रकृति प्रजनन की प्रकट आकृति उभार को अर्द्ध गोलाकार पिंड का मूर्त रुप देकर, पिंडी कहा गया और उसको मातृशक्ति एवं कर्म और व्यवहार की भावना का श्रोत कहा गया। यही संसकृति है। (५) दोनों भावना प्रधान है। विद्वान कवि तुलसी दास जी का " जिसकी रही भावना जैसी, प्रभु मुरत देखी तिन्ह तैसी " अर्थात प्रभु की आकृति भी मानव की भावना है, जो मानव के विचार से उत्पन्न होता है। विचार प्रकृति और सामाजिक परिवेश की देन है। (६) समालक सिद्धांत के अनुसार विचार एक शक्तिशाली बल है। आनंद प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर कड़ोरों अरबों मानवों के विचार बल का परमालयों के आकृति पर संश्लिष्ट होकर ऊर्जा परिवर्तन से एक नई ऊर्जा को उत्पन्न करता है, उसे एक शक्तिशाली ऊर्जा ईश्वर कहा गया। ई+श्व+र। श्व=स्व (7) समय समय पर भारतीय उपमहाद्वीप में अवतरित विद्वानों कवियों ने जीवन के यथार्थ को निरुपित करते हुए उक्त परिवर्तित नई ऊर्जा को अलंकृत किया और परिवार, समाज और राजनीति को सुदृढ़ करने का सफल प्रयास किया वही तो वेद, महाग्रंथ, उपनिषदों या फिर लोक संस्कृति में लोक भाषा में पिरोया, सबकुछ सुदृढ़ सामाजिक ढांचा के लिए झोंक दिया, आज वे हीं ईश्वर हैं। कालांतर में उसे परम+ ईश्वर और परम+ ईश्वरी अर्थात परमेश्वर और परमेश्वरी कहा गया। (8) तथ्य यह कि ईश्वर का अस्तित्व है। और यह एनर्जी का नया श्रोत है। (9) गीता का मैं कहता है, " मेरा मैं मुझमें ही लय है, नहीं तुम्हारी बात करुंगा, तू कहकर क्यों बोध प्रलय है। ".... अनिल। परस्पर की इस युगल बंदी को आत्मा-परम +आत्मा कहते हैं। यहाँ द्वैत और अद्वैत का समन्वय है। (10) ईश्वर और विचार बल एक दूसरे के पूरक हैं। (अंतिम पृष्ठ)

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