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Wednesday, February 5, 2025

सभ्यता और संस्कृति का अस्तित्व और श्रोत। लेखक -अनिल कुमार सिन्हा

प्रकृति के सभी प्राणियों में मानव हीं है, जिससे संस्कृति और सभ्यता का अस्तित्व और श्रोत जुड़े हैं, सभ्यता का अस्तित्व उन्मुक्त आनंद से , उसकी खोज और उसके भोग से है, जो देश,काल और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है,वहीं संस्कृति का अस्तित्व ममता से जुड़ा है, जिससे परिवार, समाज,कबीला और राष्ट् का निर्माण होता है। यह मूलतः मां से उद्बोधित है। यह शाश्वत और अक्षुण्ण है , परिवर्तनशील नहीं है।देश,काल और परिस्थितियों के बदलने के बावजूद अक्षुण्ण है। एक झलक में ऐसा प्रतीत होता है कि अक्षांश और देशांतर या अलग-अलग महादेश की संस्कृति भिन्न है। लेकिन सभी जगह इसका अस्तित्व ममता से ही जुड़ी है। सभ्यता और संस्कृति का श्रोत:- इनके श्रोत पर विद्वानों का जैसा मत हो, पुरातत्व, उत्खनन और शीला लेखों से जोभी विचार वर्तमान में है, लेकिन जैसे ही इन्हें आनंद और ममता से संबद्ध करते हैं, तो बात मानव के उद्भव काल से ही,"जब न अक्षर थे और न शब्द, न तो कला थी और न वाद्ययंत्र संगीत और अभिव्यक्ति के कोई और साधन; कुछ थी तो वह प्रकृति प्रदत्त मानव का कंठस्वर, नासिका से आनेवाली आवाजें, नदियों और हवाओं के बहने से उत्पन्न आवाजें, समतल या उबड़ खाबड़ जमीन और पत्थर की सपाट शिलाएं ,मानव के आंख,हाथ , ऊंगली कान आदि आदि और ब्रह्मांड, " शुरू होता है। तालाब,नदी, झड़ना आदि से पानी, ज़मीन से मिट्टी लेकर गोल, लंबा ठोस आकृति बनाकर/पत्थर या लकड़ी या ऊंगली से समतल जमीन पर आकृति उकेरना आदि मन की बातें करने-कहने का साधन था। अब जरा सोचिए, आनंद और ममता एक दूसरे के कितना पूरक हैं। कैसे! इन दोनों के लिए मानव को प्रकृति ने स्वस्फूर्त वह कौन सा ऐसा साधन दिया ? यहां मानव के उद्भव काल में संभोग और प्रजनन क्षमता है जो सब जीवों में समान रूप से व्यप्त है। मानव की यह विशेषता है कि संभोग क्रिया में मिले आनंद और प्रजनन प्रक्रिया के परिणाम में उभरे ममता को तलाशा और उन्हें विकसित करने में लगातार मानव आजतक लगे हुए हैं। पूर्ण तृप्तिदायक वह आनंद परमानंद कहलाया। जिसे बताने समझाने के लिए गीली मिट्टी से ठोस आकृति बनाते हुए क्रिया को अभिव्यक्त किया गया। उक्त आकृति बनाकर एक स्थान पर इकठ्ठा करने लगे, उस पर एक घरौंदा का निर्माण हुआ।घरौंदे की मकाननुमा आकृति ही परमालय कहा गया, जहां मानव इकठ्ठा होकर परमानंद ढुंढते थे और उक्त आनंद के लिए भिन्न भिन्न मार्ग तलाशने लगे जिससे कला, संगीत, साहित्य बना। यही सभ्यता का श्रोत है , पूज्यनीय है ।वही भग और लिंग की आकृति है और उसका अर्थात सभ्यता का अस्तित्व भी। वहीं बिना यह जाने कि प्रजनन प्रक्रिया संभोग का परिणाम है, पेट की आकृति का धीरे धीर एक सीमा तक बढ़ते जाना , फिर असहनीय वेदना और एक नये प्राणी का आना , जननी से उक्त जीव का पोषण ,आकर्षण और लगाव से ममता का बोध होना उन प्राणियों के लिए लोमहर्षक खुशी का अनुभव होना , जिसे व्यक्त करने केलिए जिस तरीके से जमीन पर रेखा खींच कर और मध्य में अर्ध गोलाकार बनाकर प्रजनन की स्थिति विशेष को दर्शाया गया , वही संस्कृति का श्रोत है। आज भी सभ्यता संस्कृति का वही सिम्बौल है। धर्म :-संस्कृति का समानुपाति और सभ्यता का व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात धर्म = के गुणा संस्कृति / सभ्यता है, जहां के परिवेश है। Ie Religion is directly proportional to Culture and inversely proportional to Civilization. Rl= K.cu/cv. Where K is a constant represent ENVIRONMENT.

2 comments:

  1. वेव पर त्रुटिहीन है, उसे प्रकाशित करें।

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